आज सुबह अख़बार पढ़ कर मेरी आखें नाम हो गई, आखिर उन नागरिकों का क्या दोष जो इस खून के खेल में बेक़सूर मरे जा रहे हैं??
मैं आज आतंकवादिओं से एक सवाल पूछना चाहता हूँ क्या वो इन्सान नहीं हैं??
क्या उनके सीने में दिल नहीं है??
फिर आखिर क्यों?
मैं तो आज इतना ही कहूँगा-
"मुझे मिल जाओ अगर तुम सब शैतान,
टुकड़े-टुकड़े कर दें गे तेरे o हैवान,
मिटा देंगे नाम तेरा देश से,
तब हम लेंगे चैन की सांस...
अपने कमेंट्स जरूर लिखें..
bhagwan se यही दुआ करता हूँ,
इस आतंकवाद से हमारे देश को जल्द से जल्द छुटकारा मिले--
Thursday, November 27, 2008
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